. सवेरा कर लिये हे दरवाजे बंद उसने, इतना नाराज हैं वो हमसे हालात देख के दुसरे देशो की, दिल धडकता कम डर ता ज्यादा है कब गुंजेगी वो आवाजे फिरसे, फेरीवालो की, सबजीवालो की! मैदान भी बंजर से पडे है, ना कोई कीलकिलात ना शोर! अच्छा लगा था जब छुटीया मिली, पर अब याद दोस्तों की सताने लगी... अंधेरा सा छा गया है आज, पर सवेरा भी होगा, और सूरज भी निकलेगा, खुले आसमा के नीचे फिरसे, गाडी पर अपने गलियोसे घुमेंगे.. रस्ते पर खडे किसी ठेले पर, वडापाव, चाट का मजा भी लेंगे.. हा सवेरा भी होगा, सूरज भी निकलेगा, पट्री पर लोकल फिरसे दोडने लगेगी, थमी मुंबई फिरसे भागने लागेगी, होठो पे मुस्कान फिरसे छाने लागेगी |||| - अक्षय कदम
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