. इंसानियत की तलाश इतनी भूक तो वो सेह लेती, पर बात उसके बच्चे की थी, छोड़ कर वो घर निकली, ढूंडने खाना इंसान की गली, भरोसा उसको बहुत ही था, जो दिया वो खा लिया.......... दर्द कितना हुआ होगा उसे, नहीं जताया कुछ भी उसने, ताकत तो इतनी थी की, चाहे तो पूरा तेहस नेहस करती, पर वो कुछ कम पढ़ी थी, इन्सान कुछ ज्यादा ही पढ़े है..... तलाश में पानी के निकल पड़ी, खड़ी हो गई पानी के बीच में, दर्द का कहा वो सोच रही थी, दिल और दिमाग में बस बच्चे की बात थी..... हा वो इंसान ही थे उसे बचाने गए थे, पर अब भरोसा उसे अपनों पर भी नहीं था, शर्म अब इंसान को कहा है आती, सर उसने खुद ही पानी में छिपा लिया था.... शायद बच्चे के खातिर वो खड़ी होगी, हा वो भी तो एक मा ही थी, दर्द तो पूरा सेह लेती, पर जान तो बच्चे में ही अटकी थी, किया है ये किसी इंसान ने ही, पर बदनाम आज पूरी इंसानियत हुई है.......!!!! - अक्षय कदम
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